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फलित ज्योतिष : कितना सच कितना झूठ : आस्था से विज्ञान तक (Hindi Edition…

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(as of Nov 18, 2024 13:34:27 UTC – Details)


ज्योतिष का कुछ अंश सत्य, कुछ भ्रमित करनेवाला पहेली जैसा होता है। इस कारण लोग एक लम्बे अर्से से इसमें अंतर्निहित सत्य और झूठ दोनो को ढोते चले आ रहे हैं।

आजतक विश्व के विश्व-विद्यालयों में ज्योतिष या अन्यो विधाओं को समुचित स्थान नहीं मिल सका है।

ज्योतिष विद्या की कमजोरियों की अनुभूति होने पर मौलिक चिंतन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा नहीं लिया जाता।

वैदिककालीन स्वदेशी विद्याएं भारतीय संस्कृति, दर्शन और आध्यात्म की जननी है, पर प्रशासक और बुद्धिजीवी वर्ग इनकी अस्पष्टता को अंधविश्वास समझते हैं।

क्या एक राशि या लग्न के लिए लिखे गए फल करोड़ों व्यक्तियों के लिए सही हैं ?

राहू-केतु के भयानक प्रभाव की चर्चा करते क्यों चले आ रहें हैं ?

करोड़ों-अरबों मील की दूरी पर स्थित ग्रह सचमुच जड़-चेतन पर प्रभाव डालता है ? अगर प्रभावित करता है तो किस विधि से प्रभावित करता है ?

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मवादी होने का उपदेश दिया है, ग्रहों के प्रभाव और प्रारब्ध पर विश्वास किया जाए या कर्मवादी बना जाए ?

क्या भावी अनिष्टकर घटनाओं को टाला जा सकता है ?

क्या ग्रहों के प्रभाव और रत्नों के प्रभाव के बीच परस्पर संबंध को सिद्ध करने के लिए एक प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है ?

कहीं तंत्र, मंत्र,यंत्र, पूजा-पाठ, प्रार्थना की तरह रत्न-धारण भी स्वान्तः सुखाय मनोवैज्ञानिक इलाज तो नहीं है ?

शुभ मुहूर्त्त और यात्रा निकालने के बाद भी किए गए बहुत सारे कार्य अधूरे पड़े रहते हैं या कार्यों की समाप्ति के बाद परिणाम नुकसानप्रद सिद्ध होते हैं। एक अच्छे मुहूर्त्त में लाखों विद्यार्थी परीक्षा में सम्मिलित होते हैं, किन्तु सभी अपनी योग्यता के अनुसार ही फल प्राप्त करते हैं, फिर मुहूर्त्तो या यात्रा का क्या औचित्य है ?

क्या शकुन पद्धति या पशु-पक्षी की गतिविधि से भी भविष्य की जानकारी प्राप्त की जा सकती है ?

हस्तरेखा पढ़कर भविष्य की कितनी जानकारी प्राप्त की जा सकती है ?

क्या हस्ताक्षर बदलकर भविष्य बदला जा सकता है ?

आखिर वास्तुशास्त्र फलित ज्योतिष का ही अंग है या बुरे ग्रहों का इलाज या फिर प्राचीनकालीन भवन-निर्माण की विकसित तकनीक ?

अति सामान्य और गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले व्यक्तियों की कुंडलियों में कभी-कभी कई राजयोग दिखाई पड़ जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में इन राजयोगों का क्या महत्व रह जाता है ?

ग्रहों के दशाकाल निर्धारण के लिए अष्टोत्तरी,विंशोत्तरी, षोडशोत्तरी, द्वादशोत्तरी, योगिनी दशा आदि अनेक पद्धतियों का उल्लेख है, इनमें से किसे सही और किसे गलत समझा जाए ?

स्थान-बल, काल-बल, दिक-बल, नैसर्गिक-बल, चेष्टा-बल,दृष्टि-बल, षडवर्ग-बल, अष्टकवर्ग-बल आदि विधियों से किसी कुंडली में सबसे कमजोर और सबसे शक्तिशाली ग्रह को समझा जा सकता है या ग्रहशक्ति का रहस्य उसकी गतिज ऊर्जा,स्थैतिज ऊर्जा तथा गुरुत्वाकर्षण-बल में अंतर्निहित हैं ?

कुंडली के नवग्रह कभी बाल्यकाल में शादी का योग उपन्न करते थे, आज के युवा-युवती पूर्ण व्यस्क होने पर ही विवाह-बंधन में पड़ना उचित समझते हैं। आज सभ्यता,संस्कृति, राजनीति और बाजार का विश्वीकरण हो गया है। पहले लोग सरल हुआ करते थे, आज संत भी जटिल हुआ करते हैं। आखिर ग्रहों के प्रभाव में बदलाव है या अन्य कोई गोपनीय कारण है ?

उपरोक्त प्रश्न अक्सरहा पत्र-पत्रिकाओं में चुनौतियों के रुप में उपस्थित होते रहते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर दिए बिना फलित ज्योतिष को प्रगति-पथ पर नहीं ले जाया जा सकता।

इस पुस्तक में विवेच्य प्रसंगों की सांगोपांग व्याख्या करके पाठकों को ज्योतिष के वास्तविक स्वरुप से परिचित कराने की चेष्टा हुई है। ज्योतिष के वैज्ञानिक स्वरुप को उभारते हुए ग्रहशक्ति और दशा-काल निर्धारण से संबंधित नयी खोजों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यह भी सिद्ध किया गया है कि ग्रहों का जड़-चेतन, वनस्पति, जीव-जन्तु और मानव-जीवन पर प्रभाव है। प्रस्तुत पुस्तक ज्योतिषियों,बुद्धिजीवी वर्ग तथा वैज्ञानिक दृष्टि कोण रखनेवाले व्यक्तियों के लिए बहुत उपयोगी एवं सम्बल प्रदान करनेवाली सिद्ध होगी।

ASIN ‏ : ‎ B08CBKPQXR
Publisher ‏ : ‎ Gatyatmak Prakashan; 1st edition (July 2, 2020)
Publication date ‏ : ‎ July 2, 2020
Language ‏ : ‎ Hindi
File size ‏ : ‎ 1740 KB
Simultaneous device usage ‏ : ‎ Unlimited
Text-to-Speech ‏ : ‎ Enabled
Screen Reader ‏ : ‎ Supported
Enhanced typesetting ‏ : ‎ Enabled
Word Wise ‏ : ‎ Not Enabled
Print length ‏ : ‎ 264 pages

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